Posts

Showing posts from 2017

आठ दिन से भूखी थी बच्ची

आठ दिन से भूखी थी बच्ची....... झारखंड के सिमडेगा में 11 वर्षीय बच्ची का भूख से मर जाना यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है? यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 79.5 फीसदी लोगों के पास खाना नहीं है। जिसकी वजह से चार में से हर एक बच्चा भूखा रह जाता है। 1.50 अरब आबादी वाले भारत देश में 20 करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे पेट सोने के लिए मजबूर है। देश को डिजिटल इण्डिया बनाने की कवायद जहा एक ओर जारी है और बेटियों को लेकर अनेकों प्रकार की मुहिम चलाई जा रही है। वही देश की बेटी भूखो मर रही है। अगर कुछ दिन तक कोयला देवी को बिना राशन कार्ड के भी राशन दे दिया जाता तो न सरकार के ऊपर कोई फर्क पड़ता और न ही उस दुकानदार के ऊपर। इस बात से यह पता चलता है कि हमारे देश में जनता तो रहती है लेकिन कोई भी जिम्मेदार नहीं है। 

आखरी बार

"आखरी बार" मेरी नींद रोज़ सुबह अपने आप 6 बजे से पहले खुल जाती है, पुरानी आदत है, पर जब तक मैडम थीं तो एक आदत थी कि जब तक वो हमें कॉल न करतीं और हमें गुड मॉर्निंग न बोलतीं हम बिस्तर नहीं छोड़ा करते। लेटे लेटे वो शायद पांच या दस मिनट का रोज़ का इंतज़ार अपने आप में बहुत मीठा सा ज़ायका लिए हुए होता था। वो भी जानती थी कि मैं जग जाता हूँ क्यों कि पहली रिंग में ही फोन उठ जाता था और उस तरफ से रोज़ वही एक बात, " गुड मॉर्निंग, मेरे गुड बॉय उठो, जल्दी से तैयार हो नाश्ता करो और ऑफिस में मिलो"। इतना काफी होता था मेरा दिन बनाने के लिए, एक परफेक्ट दिन, लगभग शायद 6 साल बिना एक भी दिन मिस किये मेरी हर सुबह ऐसे ही होती थी, जिस दिन छुट्टी होती थी उस दिन बस ऑफिस में मिलने वाली बात नहीं बोली जाती थी। 17 नवम्बर 2010, उसकी शादी से ठीक 5 दिन पहले, ठीक ठाक सी सर्दी थी, हम उस समय तीन बैचलर्स एक साथ रहते थे तीन कमरे के बड़े से घर में मगर मैं उस दिन उन तीन कमरों में अकेला ही था, बाकी दोनों छुट्टी लेकर घर गए हुए थे, हालांकि मेड मेरा खाना बना कर गयी थी मगर उन दिनों तो मेरी ज़िंदगी टाइम बम की तरह थी

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इंसाफ मांगने पर मिली लाठियां।

#BHU_बवाल काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओ पर हुए लाठीचार्ज में पक्ष और विपक्ष के तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे है। लेकिन जवाब अभी तक स्पष्ट नहीं मिल सका है कि शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन आखिर इस कदर कैसे हिंसक हो उठा कि पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी या गोलियां दागनी पड़ी? वह भी बिना महिला पुलिस के कहां की संवेदनशीलता है। लड़कियां तो अपनी सुरक्षा कि मांग कर रही थी लेकिन आधी रात में डंडे बरसाना कहाँ का न्याय है।लोकतंत्र में आंदोलन का डंडे की जोर पर दबाना न्यायसंगत नहीं।

इंसानियत-आकिल कि कलम से....।

अब तो इन हवाओं में बू-सी आने लगी है। लगता है कहीं इंसानियत जल रही है।

आकिल खान...कि कलम से।

मिली थी दो दिन बाद शांति के हमने आराम किया। जल उठा सारा शहर, सब कुछ देख के न बोले के हमने आराम किया। वक़्त नहीं अभी कुछ करने का, के हमने आराम किया।बिगड़ रही है मुल्क की मिल्कियत तो बिगड़ने दो, के हमने आराम किया। #साहब लफ्ज़ो का हेर फेर है, बस समझने की कोशिश करें। #आकिलखान